The best Side of Shodashi
Wiki Article
Tripura Sundari's kind is not merely a visible illustration but a map to spiritual enlightenment, guiding devotees through symbols to be aware of further cosmic truths.
सा नित्यं रोगशान्त्यै प्रभवतु ललिताधीश्वरी चित्प्रकाशा ॥८॥
ध्यानाद्यैरष्टभिश्च प्रशमितकलुषा योगिनः पर्णभक्षाः ।
Within the context of electric power, Tripura Sundari's beauty is intertwined with her toughness. She's not simply the image of aesthetic perfection but additionally of sovereignty and triumph over evil.
सा नित्यं मामकीने हृदयसरसिजे वासमङ्गीकरोतु ॥१४॥
यह उपरोक्त कथा केवल एक कथा ही नहीं है, जीवन का श्रेष्ठतम सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति पर षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी की कृपा हो जाती है, जो व्यक्ति जीवन में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है, क्योंकि यह शक्ति शिव की शक्ति है, यह शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया — तीनों स्वरूपों को पूर्णत: प्रदान करने वाली है।
कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, check here गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —
देवस्नपन दक्षिण वेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि
They were also blessings to gain materialistic blessings from distinct Gods and Goddesses. For his consort Goddess, he enlightened human beings Along with the Shreechakra and in order to activate it, a single must chant the Shodashakshari Mantra, which is often known as the Shodashi mantra. It is claimed to generally be equivalent to all of the 64 Chakras set alongside one another, along with their Mantras.
हस्ते पाश-गदादि-शस्त्र-निचयं दीप्तं वहन्तीभिः
लक्ष्या या पुण्यजालैर्गुरुवरचरणाम्भोजसेवाविशेषाद्-
कालहृल्लोहलोल्लोहकलानाशनकारिणीम् ॥२॥
इति द्वादशभी श्लोकैः स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् ।
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥